मध्य वर्ष के मई मॉस में , नयी सरकार बनायीं थी |
दिल्ली के दरबार में ,दस्तक दर्ज करायी थी ||
गर्मी के गर्म हवा में , गुब्बारे लाया मनमोहन |
शुरू हुआ भ्रस्टों का तांडव , शुरू हुआ नया आरोहन ||
कोख में डाले कपत्कर्मी, ली शपथ क़ुरबानी की |
बेचारे बेबस राष्ट्र में , महफ़िल थी बईमानी की||
करोरों कोढियों को कूटने , कौरवों की पेशी थी |
दुराचारियों की द्रोण , फिर से वही विदेशी थी ||
संसद के सत्रों के , हुई नयी सगुफों की शुरुआत |
शुरू हुई निर्लाजता, और मानवता का आघात ||
जनमानस के मस्तक में तो, क्रिकेट फिल्मों के जोड़ी थे|
संसद भी नपुंसक था , जहाँ ऐसे वृद्ध विरोधी थे ||
वृद्ध विपक्ष, वीर ना था |
शायद उसपर भी चीर ना था |
सर्कार पर नियंत्रण की , जब उनकी थी बारी |
कुल में कलह, कपट,क्रोध में लगी थी विपक्ष सारी||
ऋतू आई जब बारिश की, तो ऊपर अम्बर सूखा था |
दिल्ली में तो दावत थी , किन्तु वह हलधर भूखा था ||
ना श्याही गयी थी अंगुली से , न गयी थी उन चिताओं से राख |
निकला मानवता का जनाज़ा ,और मिले मृतको को लाख ||
वर्षा के बाद , आई , शरद की बारी |
दिल्ली में भी थी अब, शरद की पारी ||
बजी महंगाई की डंका, टूटे सारे कीर्तिमान |
फिर भी स्थाई थी लंका, तो क्या अगर गए कई जान? ||
नए वर्ष में नया अजेंडा , लेकर आई यह सरकार |
शिखर पर थे अब कलमाड़ी , जिन्हें था क्रीड़ों से प्यार ||
भ्रस्टाचार की लक्ष्मण रेखा , को लांघने का रश्म था |
कर हरण सीतायी शर्म, ये शीला सुरेश का कर्म था ||
आई फिर से गर्म ऋतू, शुरू हुआ नया अध्याय |
राजा की हैवानियत से, रंक हो गयी असहाय ||
आदर्शों का बलात्कार कर, बेचा विलास ने आदर्श |
सूनी हुई देशी तिजोरी ,सुने हुए देशवाशियों के पर्स ||
फिर तो ऋतुओं ने भी , हार थी मानी |
मनमोहन की भी , वाही कहानी ||
बता अपनी मजबूरी कई, वोह तो लुप्त हो गए |
बने कई कमीशन, पर सबूत , मानों गुप्त हो गए ||
ऋतुओं की नयी माला में, फिर से आया नया उजाला |
सत्याग्रह की चोली पहने , दिल्ली आया खादीवाला ||
की आन्दोलन घमासान, लोकायुक्त की मांग थी |
खादिवाले के नज़रों में, तो दुर्योधन की जांघ थी ||
भ्रस्ताचारियों के खेमे से, रिशवत भर के आई झोली |
पर खादीवालों, की भीड़ में ,आई ,योगी की भी टोली ||
झकझोर कर ललकारा, दिखाया युवाओं को दर्पण |
प्रत्यारोप से परे उठो, और करो कोइ परिवर्तन ||
क्यों की ...
परिवर्तन ही प्रतिशोध का प्रथम पृष्ट है |
रामलीला में रावण के रावानियत का दृष्ट है ||
कमर कस ,कलम उठा, हे कलयुग के कर्मवीरों |
यह युद्ध काण्ड है, यहाँ वृद्ध नहीं, वीर ही वरिष्ट है ||
-- Sarthak Siddhartha
Tuesday, August 16, 2011
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