Tuesday, August 16, 2011

Karoron ki gan na mein ek Anna !!

मध्य वर्ष के मई मॉस में , नयी सरकार बनायीं थी |

दिल्ली के दरबार में ,दस्तक दर्ज करायी थी ||

गर्मी के गर्म हवा में , गुब्बारे लाया मनमोहन |

शुरू हुआ भ्रस्टों का तांडव , शुरू हुआ नया आरोहन ||







कोख में डाले कपत्कर्मी, ली शपथ क़ुरबानी की |

बेचारे बेबस राष्ट्र में , महफ़िल थी बईमानी की||

करोरों कोढियों को कूटने , कौरवों की पेशी थी |

दुराचारियों की द्रोण , फिर से वही विदेशी थी ||







संसद के सत्रों के , हुई नयी सगुफों की शुरुआत |

शुरू हुई निर्लाजता, और मानवता का आघात ||

जनमानस के मस्तक में तो, क्रिकेट फिल्मों के जोड़ी थे|

संसद भी नपुंसक था , जहाँ ऐसे वृद्ध विरोधी थे ||







वृद्ध विपक्ष, वीर ना था |

शायद उसपर भी चीर ना था |

सर्कार पर नियंत्रण की , जब उनकी थी बारी |

कुल में कलह, कपट,क्रोध में लगी थी विपक्ष सारी||







ऋतू आई जब बारिश की, तो ऊपर अम्बर सूखा था |

दिल्ली में तो दावत थी , किन्तु वह हलधर भूखा था ||

ना श्याही गयी थी अंगुली से , न गयी थी उन चिताओं से राख |

निकला मानवता का जनाज़ा ,और मिले मृतको को लाख ||







वर्षा के बाद , आई , शरद की बारी |

दिल्ली में भी थी अब, शरद की पारी ||

बजी महंगाई की डंका, टूटे सारे कीर्तिमान |

फिर भी स्थाई थी लंका, तो क्या अगर गए कई जान? ||







नए वर्ष में नया अजेंडा , लेकर आई यह सरकार |

शिखर पर थे अब कलमाड़ी , जिन्हें था क्रीड़ों से प्यार ||

भ्रस्टाचार की लक्ष्मण रेखा , को लांघने का रश्म था |

कर हरण सीतायी शर्म, ये शीला सुरेश का कर्म था ||







आई फिर से गर्म ऋतू, शुरू हुआ नया अध्याय |

राजा की हैवानियत से, रंक हो गयी असहाय ||

आदर्शों का बलात्कार कर, बेचा विलास ने आदर्श |

सूनी हुई देशी तिजोरी ,सुने हुए देशवाशियों के पर्स ||







फिर तो ऋतुओं ने भी , हार थी मानी |

मनमोहन की भी , वाही कहानी ||

बता अपनी मजबूरी कई, वोह तो लुप्त हो गए |

बने कई कमीशन, पर सबूत , मानों गुप्त हो गए ||







ऋतुओं की नयी माला में, फिर से आया नया उजाला |

सत्याग्रह की चोली पहने , दिल्ली आया खादीवाला ||

की आन्दोलन घमासान, लोकायुक्त की मांग थी |

खादिवाले के नज़रों में, तो दुर्योधन की जांघ थी ||







भ्रस्ताचारियों के खेमे से, रिशवत भर के आई झोली |

पर खादीवालों, की भीड़ में ,आई ,योगी की भी टोली ||

झकझोर कर ललकारा, दिखाया युवाओं को दर्पण |

प्रत्यारोप से परे उठो, और करो कोइ परिवर्तन ||







क्यों की ...





परिवर्तन ही प्रतिशोध का प्रथम पृष्ट है |

रामलीला में रावण के रावानियत का दृष्ट है ||

कमर कस ,कलम उठा, हे कलयुग के कर्मवीरों |

यह युद्ध काण्ड है, यहाँ वृद्ध नहीं, वीर ही वरिष्ट है ||





-- Sarthak Siddhartha